बुधवार, 18 नवंबर 2009
एन. एन. डी. भट्ट की याद में
बुधवार, 7 अक्तूबर 2009
पिया तेरी प्रीत जीवन संवार गयी
पिया तेरी प्रीत जीवन संवार गयी
बुधवार, 16 सितंबर 2009
मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए .
रविवार, 23 अगस्त 2009
उनसे मिलकर उदास होना था
शनिवार, 15 अगस्त 2009
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ
शनिवार, 8 अगस्त 2009
तुमने बुलाया पास
रविवार, 12 जुलाई 2009
आज तुम्हारी ढेरों यादें आयी मेरे नाम से .....
आज तुम्हारी ढेरों यादें
आज तुम्हारी ढेरों यादें
आयी मेरे नाम से
बढ़ने लगा दर्द का पहरा
टुकड़ा-टुकड़ा शाम से
दिन रात अगरु सा जलता मन
चुपचाप राख बनता है
निर्मोही सा कोई मेरे
जीवन को छलता है
जो बात किसी से कही नहीं
वह भी तो मेरी रही नहीं
तुमसे तो अच्छी यादें हैं
आजीवन मेरी बनी रहीं
रविवार, 5 जुलाई 2009
तुम मेरे दर्द को फूलों का घर देना
नयनों में प्यार का सागर उतार कर
साँसों को चंदन सी खुशबू का हार दो
उड़ते समय के पंछी से पूछ लो
कब तक मनाओगे फागुन के फाग को
हम तेरी प्रीति को नए प्रतिमान देंगे
पहले मेरे आँचल को वासंती कर देना
सोनजुही मन पर गमकी हैं बेलाएं
शबनम सी चमकेंगी चुटकी भर आशाएं
बौराए पेड़ों पर मौसम का पहरा है
पलकों पर इन्द्रधनुष सपनों का उतरा है
हम तेरी चाँद सी दूरी को सह लेंगे
तुम अपनी आँखों को चाँदनी से भर लेना
फ़िर कभी मधुबन की माधुरी न रोएगी
सुधियों के सिरहाने रात भर न सोएगी
रूप के सुधासर में डूब गयी छुई-मुई
अनमोल से पलों को न लाज में डुबोएगी
हम तेरा मन आँगन तुमसे उपहार लेंगे
जीवन की देहरी पर स्नेहदीप रख देना
अंजुरी में सागर मन में मधुमास लिए
आयी है पुरवैया चातक सी प्यास लिए
पूजा की थाली के फूल न मुरझा जाएँ कहीं
खिलती कचनार की सुगंध न उड़ जाए कहीं
हम तेरी यादों को गीतों में बाँध लेंगे
तुम अपनी चाह को निबाह का शगुन देना
गुरुवार, 2 जुलाई 2009
अपमानित जीवन से अनुबंध क्यूँ करें?
अपमानित जीवन से अनुबंध क्यूँ करें?
आँसुओं के मोल पर सम्बन्ध क्यूँ करें?
तन से मन का अवसाद बड़ा होता है
आदमी से ज़्यादा जल्लाद कोई होता है
पीना पड़े रोज़ अगर लान्छ्नाओं का ज़हर
मौत से भयानक हुई ज़िन्दगी की दोपहर
वर्जनाओं के असंख्य पहरे में क्यूँ रहें?
प्रेम के नाम पर प्रतिबन्ध क्यूँ सहें?
नारी तो नदी है चुपचाप बही जायेगी
अपनी खुशी से ही सागर में समाएगी
पर्वत ने रोका तो धारा को मोड़ दिया
मौसम ने छेड़ा जब बांधों को तोड़ दिया
कूलों की निर्धारित सीमा में क्यूँ बहें?
अपमानित जीवन ---------------------
हमको रुलाया है अपनों की बातों ने
बींध दिया मन को घात- प्रतिघातों ने
सीने पर बोझ लिए जीने की सज़ा है
किस्मत में देखेंगे और क्या लिखा है
संदेहों के विषधर का दंश क्यूँ सहें
अपमानित ----------------------------
जब तक स्नेह मिला जलती रही बाती
पत्थर के देवता को समझ नहीं पाती
अलगाव की सीमा पर पहुँचाया चाह ने
आँसुओं ने प्यार की कीमत चुका दी
अर्थहीन बातों के संकल्प क्यूँ करें?
अपमानित -----------------------------
आँसुओं --------------------------------
रविवार, 28 जून 2009
कोई पूछे इसके पहले .......
शुक्रवार, 26 जून 2009
अब बरस भी जाओ बादल ....
सरस घनश्याम आ जाओ
तरणी के ताप से व्याकुल
दिशाएं तप रहीं लू से
हवाएं गर्म चलती हैं
निराश्रित वृद्ध सी दोपहर
कुँवारी साध सी ढलती
बढ़ी आती है गर्मी अब
सरासर सीढियां चढ़तीं
ये कैसी उठ रही लपटें
असहनीय दर्द सी चुभती
उधर अम्बर सुलगता है
धरा पर आंधियाँ चलतीं
तृषित कंठों को सरसाने,
हृदय का भार उठवाने
चुकाओ ग्रीष्म का कर्जा
सजल जलधार से घिर आओ
धरा के अंक में झूमो
दिशाओं में समां जाओ
बहाओ भाव की सरिता
मलिन रसहीन हृदयों पर
मिले जीवन नया सबको
नवल संगीत अधरों पर
तुम्हारा मार्ग संजीवन
प्रतीक्षा में है आतुर मन
गली चौराहों,राहों पर
रूक्ष पीताभ-वृक्षों पर
उगलती आग के गोले
घुटन बैठी हिंडोले पर
तुम्हारी दृष्टि के प्यासे खड़े हैं
आज मुँह ताके
मिटाने प्यास जन-मन की
सरस घनश्याम आ जाओ
घुमड़ आकाश में स्वच्छंद
धरा की गोद भर जाओ
निलय के अंक में झूमो
सोमवार, 22 जून 2009
याद बहुत आते हैं मुझको
वो सपनीले दिन
याद बहुत आते हैं मुझको
खट्टी मीठी बातों वाले
अमियों वाले दिन
कैसी धूप कहाँ का जाड़ा
सर पर लू की चादर ओढे
सखी सहेली के घर जाना
बात-बात पर हँसने वाले
टीस जगा जाते हैं अक्सर
बचपन वाले दिन
गली मुहल्ला एक बनाते
बारी से सबके घर जाते
उनकी रसोई अपनी होती
रोज़ ही देहरी पूजा होती
अपनापे का स्वाद चखाते
बड़े मधुर संबंधों वाले
याद बहुत आते हैं मुझको
वो सपनीले दिन
अब कैसी नीरस दुनिया है
सुविधाओं का जाल बिछा है
हर कोई अपने में गम है
किसको फुर्सत है जो सोचे
अपने और पराये घर से
दूर पास से आने वाले
खुशियों के संबोधन वाले
गीतों वाले दिन
बारिश में भीगे अनुभव से
बूँदों की रिमझिम में बसते
कविताओं की पायल पहने
याद बहुत आते हैं मुझको
मेहमानों से दिन
शुक्रवार, 19 जून 2009
तुमने आँखों ही आँखों में .....
तुमने आँखों ही आँखों में
क्या संकेत दिया अनजाने
मेरे आँगन में खुशियों ने
तुमने बातों ही बातों में
क्या बातें की थीं अनजाने
मेरे भावों ने भाषा का
हर मौसम मधुमास बन गया
हर पक्षी कोकिल सा बोले
मुझको लगता इस धरती के
अल्हड़ यौवन पर मस्ती ने
करवट बदली ली अंगड़ाई
स्वप्न सजाने लगी जवानी
तुमने साँसों ही साँसों में
निःश्वास भरे कितने अनजाने
संपप्त समीरों के झोंकों ने
रात चाँदनी की चादर में
लिपटी -लिपटी सन्मुख आयी
मर्यादा भूला तम अपनी
तुमने नभ में चाँद देख कर
कोई कल्पना की अनजाने
मेरे कानों में चुपके से उसने
तुमने परिवर्तन का ऐसा
कोई मंत्र पढ़ा अनजाने
अलस चेतना सजग हो उठी
बने प्रेरणा तुम प्राणों में
जीवन में उत्साह छा गया
बिछुड़ गए तुम मुझसे लेकिन
पूजन मन्दिर में निशि-वासर
कितने भोग चढ़े क्या जानूँ
मैनें संयम की थाली में
तुमने आँखों ही आँखों में
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मेरे आँगन में खुशियों ने
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