रविवार, 28 जून 2009
कोई पूछे इसके पहले .......
शुक्रवार, 26 जून 2009
अब बरस भी जाओ बादल ....
सरस घनश्याम आ जाओ
तरणी के ताप से व्याकुल
दिशाएं तप रहीं लू से
हवाएं गर्म चलती हैं
निराश्रित वृद्ध सी दोपहर
कुँवारी साध सी ढलती
बढ़ी आती है गर्मी अब
सरासर सीढियां चढ़तीं
ये कैसी उठ रही लपटें
असहनीय दर्द सी चुभती
उधर अम्बर सुलगता है
धरा पर आंधियाँ चलतीं
तृषित कंठों को सरसाने,
हृदय का भार उठवाने
चुकाओ ग्रीष्म का कर्जा
सजल जलधार से घिर आओ
धरा के अंक में झूमो
दिशाओं में समां जाओ
बहाओ भाव की सरिता
मलिन रसहीन हृदयों पर
मिले जीवन नया सबको
नवल संगीत अधरों पर
तुम्हारा मार्ग संजीवन
प्रतीक्षा में है आतुर मन
गली चौराहों,राहों पर
रूक्ष पीताभ-वृक्षों पर
उगलती आग के गोले
घुटन बैठी हिंडोले पर
तुम्हारी दृष्टि के प्यासे खड़े हैं
आज मुँह ताके
मिटाने प्यास जन-मन की
सरस घनश्याम आ जाओ
घुमड़ आकाश में स्वच्छंद
धरा की गोद भर जाओ
निलय के अंक में झूमो
सोमवार, 22 जून 2009
याद बहुत आते हैं मुझको
वो सपनीले दिन
याद बहुत आते हैं मुझको
खट्टी मीठी बातों वाले
अमियों वाले दिन
कैसी धूप कहाँ का जाड़ा
सर पर लू की चादर ओढे
सखी सहेली के घर जाना
बात-बात पर हँसने वाले
टीस जगा जाते हैं अक्सर
बचपन वाले दिन
गली मुहल्ला एक बनाते
बारी से सबके घर जाते
उनकी रसोई अपनी होती
रोज़ ही देहरी पूजा होती
अपनापे का स्वाद चखाते
बड़े मधुर संबंधों वाले
याद बहुत आते हैं मुझको
वो सपनीले दिन
अब कैसी नीरस दुनिया है
सुविधाओं का जाल बिछा है
हर कोई अपने में गम है
किसको फुर्सत है जो सोचे
अपने और पराये घर से
दूर पास से आने वाले
खुशियों के संबोधन वाले
गीतों वाले दिन
बारिश में भीगे अनुभव से
बूँदों की रिमझिम में बसते
कविताओं की पायल पहने
याद बहुत आते हैं मुझको
मेहमानों से दिन
शुक्रवार, 19 जून 2009
तुमने आँखों ही आँखों में .....
तुमने आँखों ही आँखों में
क्या संकेत दिया अनजाने
मेरे आँगन में खुशियों ने
तुमने बातों ही बातों में
क्या बातें की थीं अनजाने
मेरे भावों ने भाषा का
हर मौसम मधुमास बन गया
हर पक्षी कोकिल सा बोले
मुझको लगता इस धरती के
अल्हड़ यौवन पर मस्ती ने
करवट बदली ली अंगड़ाई
स्वप्न सजाने लगी जवानी
तुमने साँसों ही साँसों में
निःश्वास भरे कितने अनजाने
संपप्त समीरों के झोंकों ने
रात चाँदनी की चादर में
लिपटी -लिपटी सन्मुख आयी
मर्यादा भूला तम अपनी
तुमने नभ में चाँद देख कर
कोई कल्पना की अनजाने
मेरे कानों में चुपके से उसने
तुमने परिवर्तन का ऐसा
कोई मंत्र पढ़ा अनजाने
अलस चेतना सजग हो उठी
बने प्रेरणा तुम प्राणों में
जीवन में उत्साह छा गया
बिछुड़ गए तुम मुझसे लेकिन
पूजन मन्दिर में निशि-वासर
कितने भोग चढ़े क्या जानूँ
मैनें संयम की थाली में
तुमने आँखों ही आँखों में
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मेरे आँगन में खुशियों ने
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गुरुवार, 18 जून 2009
अभी बाकी है
अभी बाकी है
बरसी हुई आँखों की प्यास अभी बाकी है
थक गए पाँव मगर ज़िन्दगी तो बाकी है
दोस्तों की भीड़ में दोस्तों का पता नहीं
फ़िर किसी नीड़ की तलाश अभी बाकी है
खोए हुए लम्हों को ढूँढा न कहाँ मैनें
मिट गए नक्श मगर याद अभी बाकी है
हर कोई अकेला है अपने-अपने दर्द में
नासमझ बातों का इतिहास अभी बाकी है
जाने क्यों जमी नहीं बात इस ज़माने मैं
ज़ख्म बढ़ते रहे उपचार अभी बाकी है
शनिवार, 13 जून 2009
ब्लोगिंग के क्षेत्र में यह मेरा पहला कदम
आज पहले दिन मैं अपनी मनपसंद ग़ज़ल प्रस्तुत कर रही हूँ ...ग़ज़ल के तौर तरीकों से वाकिफ नहीं हूँ फिर भी लिखती रहती हूँ ..
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हिन्दी ग़ज़ल - सपने
सोयी हुई यादों को अब और जगाना क्या
मेहमान बने सपने, सपनों का ठिकाना क्या
जीवन है क्षण-भंगुर, गिनती की साँस चले
खुशियों को उलझन की बातों से गंवाना क्या
मैंने तो हँसी चाही, आँसू क्यों चले आए
आंखों से बड़ा बैरी, होगा ये ज़माना क्या
क्यों बाँध रहे हो तुम उम्मीद की डोरी से
उड़ जायेगा मन पंछी, पिंजरे को सजाना क्या
क्या खोज रहा कोई चेहरे की उदासी में
मिलना ही बिछड़ना है, रोने का बहाना क्या
अपनों की बस्ती में हमदर्द नहीं कोई
सब दर्द के रिश्ते हैं, रिश्तों को रिझाना क्या
मुश्किल है जहाँ मंज़िल, उस राह से गुज़री हूँ
मन चाहा हमराही, आसान है पाना क्या?
बुझते हुए दीपक की लौ, किसने बढ़ा दी है
कुछ पल ही जले आख़िर, जलते को बुझाना क्या