रविवार, 6 जून 2010
चुकाओ ग्रीष्म का कर्जा ...सजल जलधर से घिर आओ|
शुक्रवार, 14 मई 2010
हर उम्र में भीगता सावन नहीं आता|.....
मंगलवार, 11 मई 2010
कोई उद्दाम अभिलाषा सभी प्रतिबन्ध तोड़ेगी|
अधूरी कामनाएँ
अधूरी कामनाएँ फिर मेरे सपनों में आ पहुँची
कोई उद्दाम अभिलाषा सभी प्रतिबन्ध तोड़ेगी|
नियम के साथ क्या मन को
हमेशा बाँधना होगा
खुले आकाश के नीचे
धरा को नापना होगा
दिशाओं के निमंत्रण पर क्षितिज की माँग आ पहुँची
उडानें पंछियों की फिर नए सम्बन्ध जोड़ेंगी|
बड़ा अभिमान लहरों को
किनारे साध कर चलती
उसे मालूम क्या गति पर
नहीं बैसाखियाँ लगतीं
अनिश्चय बांटती राहें हमारे पास आ पहुँचीं
संभालो गाँव - घर अपने, नदी तटबंध तोड़ेगी|
मिटाया विवशताओं ने
अधूरी रात का सपना
हमें कब तक ना आएगा
ह्रदय को बाँध कर रखना
ये तन - मन की निराशाएं मेरे सिरहाने आ पहुँचीं
कोई व्याकुल प्रतीक्षा अनछुए सन्दर्भ ढूंढेगी|
सदा पहरा नहीं चलता
बड़ी संवेदनाओं पर
बहुत बीमार हैं आँखें
नहीं रहतीं ठिकाने पर
उदासी बेखबर होकर मेरे आँगन में आ पहुँची
पुरानी ओढ़नी पर ये नए पैबंद जोड़ेगी|
कोई उद्दाम अभिलाषा सभी प्रतिबन्ध तोड़ेगी|