शनिवार, 16 जनवरी 2010

नव बसंत

नव बसंत 
 
कल्पना के पर झुलाता 
दूर से नव गीत गाता 
गुनगुनाता फिर धरा में 
मुस्कुराता पास आया 
नव बसंत 
 
मूक प्रतिमाएं मुखर हो 
गा रहीं संगीत चंचल 
कौन रोके उन्मद  लहर सा  
जो लहरता लहर आया
मधु बसंत
 
हो गया है क्या ना जाने ?
लग रहा जैसे अंजाने 
आज मेरा दर्द कोई 
मस्तियों में बाँट आया 
है बसंत 
 
कुछ उष्णता सी मदभरी 
छाई हवाओं में 
मनचला मन बह रहा 
बासंती फिजाओं में 
शायद फिर गावों  में  
बरस आया
प्रिय बसंत
 
मिलन की शुभ चन्द्रिका में
है गुलालों की ललाई
हर डगर पर है सुहागिन
सी बसन्ती नमी छाई
नए छंदों में मचलता
भावनाओं का बसंत
नव बसंत
 
आज आशा की लताएं
स्वप्न सी स्वर्णिम हुई है
सुमन सौरभ सा झराता
कुछ पुरानी सुधि भुलाता
नई साधों को जगाता
उभर आया
मधु बसंत
 
कल्पना के पर झुलाता
दूर से नव गीत गाता
गुनगुनाता फिर धरा में
मुस्कुराता पास आया
नव बसंत