नव बसंत
कल्पना के पर झुलाता
दूर से नव गीत गाता
गुनगुनाता फिर धरा में
मुस्कुराता पास आया
नव बसंत
मूक प्रतिमाएं मुखर हो
गा रहीं संगीत चंचल
कौन रोके उन्मद लहर सा
जो लहरता लहर आया
मधु बसंत
हो गया है क्या ना जाने ?
लग रहा जैसे अंजाने
आज मेरा दर्द कोई
मस्तियों में बाँट आया
है बसंत
कुछ उष्णता सी मदभरी
छाई हवाओं में
मनचला मन बह रहा
बासंती फिजाओं में
शायद फिर गावों में
बरस आया
प्रिय बसंत
मिलन की शुभ चन्द्रिका में
है गुलालों की ललाई
हर डगर पर है सुहागिन
सी बसन्ती नमी छाई
नए छंदों में मचलता
भावनाओं का बसंत
नव बसंत
आज आशा की लताएं
स्वप्न सी स्वर्णिम हुई है
सुमन सौरभ सा झराता
कुछ पुरानी सुधि भुलाता
नई साधों को जगाता
उभर आया
मधु बसंत
कल्पना के पर झुलाता
दूर से नव गीत गाता
गुनगुनाता फिर धरा में
मुस्कुराता पास आया
नव बसंत