बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

पिया तेरी प्रीत जीवन संवार गयी



पिया तेरी प्रीत  जीवन संवार गयी
चमचमाती धूप घने कोहरे को छाँट गयी
 
माथे अनुराग का टीका सजाए बैठी हूँ
घूंघट मैं लाज का, आँखों में छिपाए बैठी हूँ
 
हंसी तेरी, रूप मेरा कैसे निखार गयी
पिया तेरी प्रीत  जीवन संवार गयी
 
हाथों में बंधन का रूप नहीं कंगन ये
 जिसका ना  छोर कोई, ऐसा गठबंधन ये
 
 लगे मुझे संग तेरे हर दिन हर रात नई 
पिया तेरी प्रीत  जीवन संवार गयी
 
उलझन से दूर मैंने केशों को गूंथा है
 तेरे साथ खुशियों का हर क्षण अनोखा है
 
इसी बात पर ना कभी लोगों की आँख गयी
पिया तेरी प्रीत  जीवन संवार गयी
 
जितना निर्बाध है ये गंगा का पानी
उतनी स्वच्छंद मेरे प्यार की कहानी
 
बिना कहे, बिना सुने घर - घर के द्वार गयी
पिया तेरी प्रीत  जीवन संवार गयी
 
तू ही मेरे धर्म, तेरा प्यार मेरी पूजा है
बाकी जो देखा, वो आँखों का धोखा है
 
हर नज़र में सांस तेरी आरती उतार गयी
 पिया तेरी प्रीत  जीवन संवार गयी
 
 

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्यार के सकारात्मक पक्ष को आपने कविता में बहुत सुंदर ढंग से उकेरा है, अच्छा लगा इसे पढकर। सच्चा पयार इसे ही कहते हैं।
    करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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    बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?

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  2. आपका यह पवित्र पावन प्रणयगीत मन मुग्ध कर गया......

    बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर इस रचना और आपकी भावनाओं को नमन..

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