शुक्रवार, 14 मई 2010

हर उम्र में भीगता सावन नहीं आता|.....

गुमशुदा मन का पता कोई नहीं पाता
इस डगर से आजकल कोई नहीं आता|
 
मुस्कुरा देती हूँ मैं कौन समझाए उन्हें
हर उम्र में भीगता सावन नहीं आता|
 
एक अनबोली व्यथा है आपकी बातों में, पर
लाज का घूंघट उठाया भी नहीं जाता|
 
नदी तो बहती रही और तट सूखे रहे 
काश ! कोई थाह का अनुमान कर पाता|
 
लाख पूजो देवता को फूल, अक्षत, आरती से
क्या करूँ यह   मन समर्पित हो नहीं पाता|
 
ज़िंदगी के दिन कठिन कैसे बिताते हम अगर
बहते आंसू पोछ कर हंसना नहीं आता| 

मंगलवार, 11 मई 2010

कोई उद्दाम अभिलाषा सभी प्रतिबन्ध तोड़ेगी|

अधूरी कामनाएँ

 

अधूरी कामनाएँ फिर मेरे सपनों में आ पहुँची

कोई उद्दाम अभिलाषा  सभी प्रतिबन्ध  तोड़ेगी|  

 

नियम के साथ क्या मन को

हमेशा बाँधना होगा

खुले आकाश के नीचे

धरा को नापना होगा  

 

दिशाओं के निमंत्रण पर क्षितिज की माँग आ पहुँची   

उडानें पंछियों  की फिर नए सम्बन्ध जोड़ेंगी|  

 

बड़ा अभिमान लहरों  को 

किनारे साध कर चलती 

उसे मालूम क्या गति  पर 

नहीं बैसाखियाँ लगतीं   

 

अनिश्चय बांटती राहें हमारे पास आ पहुँचीं 

संभालो गाँव - घर अपने, नदी तटबंध तोड़ेगी| 

 

मिटाया विवशताओं ने 

अधूरी रात का सपना 

हमें कब तक ना आएगा 

ह्रदय को बाँध कर रखना  

 

ये तन - मन की निराशाएं मेरे सिरहाने आ पहुँचीं 

कोई व्याकुल प्रतीक्षा अनछुए सन्दर्भ ढूंढेगी| 

 

सदा पहरा नहीं चलता 

बड़ी संवेदनाओं पर 

बहुत बीमार हैं  आँखें 

नहीं रहतीं ठिकाने पर  

 

उदासी बेखबर होकर मेरे आँगन में आ पहुँची 

पुरानी ओढ़नी पर ये नए पैबंद जोड़ेगी|

 

कोई उद्दाम अभिलाषा  सभी प्रतिबन्ध  तोड़ेगी|