रविवार, 12 जुलाई 2009

आज तुम्हारी ढेरों यादें आयी मेरे नाम से .....

आज तुम्हारी ढेरों यादें

 

आज तुम्हारी ढेरों यादें

आयी मेरे नाम से

बढ़ने लगा दर्द का पहरा

टुकड़ा-टुकड़ा शाम से

 

दिन रात अगरु सा जलता मन  

चुपचाप राख बनता है

निर्मोही सा कोई मेरे

जीवन को छलता है

 

जो बात किसी से कही नहीं  

वह भी तो मेरी रही नहीं  

तुमसे तो अच्छी यादें हैं  

आजीवन मेरी बनी रहीं

रविवार, 5 जुलाई 2009

हम तेरे जीवन की राह को संवार देंगे
तुम मेरे दर्द को फूलों का घर देना

नयनों में प्यार का सागर उतार कर
साँसों को चंदन सी खुशबू का हार दो
उड़ते समय के पंछी से पूछ लो
कब तक मनाओगे फागुन के फाग को

हम तेरी प्रीति को नए प्रतिमान देंगे
पहले मेरे आँचल को वासंती कर देना

सोनजुही मन पर गमकी हैं बेलाएं
शबनम सी चमकेंगी चुटकी भर आशाएं
बौराए पेड़ों पर मौसम का पहरा है
पलकों पर इन्द्रधनुष सपनों का उतरा है

हम तेरी चाँद सी दूरी को सह लेंगे
तुम अपनी आँखों को चाँदनी से भर लेना

फ़िर कभी मधुबन की माधुरी न रोएगी
सुधियों के सिरहाने रात भर न सोएगी
रूप के सुधासर में डूब गयी छुई-मुई
अनमोल से पलों को न लाज में डुबोएगी

हम तेरा मन आँगन तुमसे उपहार लेंगे
जीवन की देहरी पर स्नेहदीप रख देना

अंजुरी में सागर मन में मधुमास लिए
आयी है पुरवैया चातक सी प्यास लिए

पूजा की थाली के फूल न मुरझा जाएँ कहीं
खिलती कचनार की सुगंध न उड़ जाए कहीं

हम तेरी यादों को गीतों में बाँध लेंगे
तुम अपनी चाह को निबाह का शगुन देना

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

अपमानित जीवन से अनुबंध क्यूँ करें?

क्यूँ सहें
 
अपमानित जीवन से अनुबंध क्यूँ करें? 
आँसुओं के मोल पर सम्बन्ध क्यूँ करें?
 
तन से मन का अवसाद बड़ा होता है
आदमी से ज़्यादा जल्लाद कोई होता है
पीना पड़े रोज़ अगर लान्छ्नाओं का ज़हर 
मौत से भयानक हुई ज़िन्दगी की दोपहर
 
वर्जनाओं के असंख्य पहरे में क्यूँ रहें?
प्रेम के नाम पर प्रतिबन्ध क्यूँ सहें?
 
नारी तो नदी है चुपचाप बही जायेगी
अपनी खुशी से ही सागर में समाएगी
पर्वत ने रोका तो धारा को मोड़ दिया
मौसम ने छेड़ा जब बांधों को तोड़ दिया
 
कूलों की निर्धारित सीमा में क्यूँ बहें?
अपमानित जीवन ---------------------
 
हमको रुलाया है अपनों की बातों ने
बींध दिया मन को घात- प्रतिघातों ने
सीने पर बोझ लिए जीने की सज़ा है
किस्मत में देखेंगे और क्या लिखा है
 
संदेहों के विषधर का दंश क्यूँ सहें
अपमानित ----------------------------
 
जब तक स्नेह मिला जलती रही बाती
पत्थर के देवता को समझ नहीं पाती
अलगाव की सीमा पर पहुँचाया चाह ने 
आँसुओं ने प्यार की कीमत चुका दी
 
अर्थहीन बातों के संकल्प क्यूँ करें?
अपमानित -----------------------------
आँसुओं --------------------------------