शुक्रवार, 14 मई 2010

हर उम्र में भीगता सावन नहीं आता|.....

गुमशुदा मन का पता कोई नहीं पाता
इस डगर से आजकल कोई नहीं आता|
 
मुस्कुरा देती हूँ मैं कौन समझाए उन्हें
हर उम्र में भीगता सावन नहीं आता|
 
एक अनबोली व्यथा है आपकी बातों में, पर
लाज का घूंघट उठाया भी नहीं जाता|
 
नदी तो बहती रही और तट सूखे रहे 
काश ! कोई थाह का अनुमान कर पाता|
 
लाख पूजो देवता को फूल, अक्षत, आरती से
क्या करूँ यह   मन समर्पित हो नहीं पाता|
 
ज़िंदगी के दिन कठिन कैसे बिताते हम अगर
बहते आंसू पोछ कर हंसना नहीं आता| 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति

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  2. मन के भावों का सुंदर चित्रण

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  3. बहुत उम्दा कविता

    मुस्कुरा देती हूँ मैं कौन समझाए उन्हें
    हर उम्र में भीगता सावन नहीं आता|

    एक अनबोली व्यथा है आपकी बातों में, पर
    लाज का घूंघट उठाया भी नहीं जाता|

    मन को छू गईं पंक्तियाँ

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  4. नदी तो बहती रही और तट सूखे रहे
    काश ! कोई थाह का अनुमान कर पाता|

    नदी तो अथाह थी पर थाह लेने वालों ने इसे कहीं का नहीं छोड़ा.
    सुन्दर रचना

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  5. लाख पूजो देवता को फूल, अक्षत, आरती से
    क्या करूँ यह मन समर्पित हो नहीं पाता

    -बहुत सुन्दर!

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