गुमशुदा मन का पता कोई नहीं पाता
इस डगर से आजकल कोई नहीं आता|
मुस्कुरा देती हूँ मैं कौन समझाए उन्हें
हर उम्र में भीगता सावन नहीं आता|
एक अनबोली व्यथा है आपकी बातों में, पर
लाज का घूंघट उठाया भी नहीं जाता|
नदी तो बहती रही और तट सूखे रहे
काश ! कोई थाह का अनुमान कर पाता|
लाख पूजो देवता को फूल, अक्षत, आरती से
क्या करूँ यह मन समर्पित हो नहीं पाता|
ज़िंदगी के दिन कठिन कैसे बिताते हम अगर
बहते आंसू पोछ कर हंसना नहीं आता|
बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमन के भावों का सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा कविता
जवाब देंहटाएंमुस्कुरा देती हूँ मैं कौन समझाए उन्हें
हर उम्र में भीगता सावन नहीं आता|
एक अनबोली व्यथा है आपकी बातों में, पर
लाज का घूंघट उठाया भी नहीं जाता|
मन को छू गईं पंक्तियाँ
नदी तो बहती रही और तट सूखे रहे
जवाब देंहटाएंकाश ! कोई थाह का अनुमान कर पाता|
नदी तो अथाह थी पर थाह लेने वालों ने इसे कहीं का नहीं छोड़ा.
सुन्दर रचना
bahut hi aundar..lyabaddh kavita...
जवाब देंहटाएंलाख पूजो देवता को फूल, अक्षत, आरती से
जवाब देंहटाएंक्या करूँ यह मन समर्पित हो नहीं पाता
-बहुत सुन्दर!