मंगलवार, 11 मई 2010

कोई उद्दाम अभिलाषा सभी प्रतिबन्ध तोड़ेगी|

अधूरी कामनाएँ

 

अधूरी कामनाएँ फिर मेरे सपनों में आ पहुँची

कोई उद्दाम अभिलाषा  सभी प्रतिबन्ध  तोड़ेगी|  

 

नियम के साथ क्या मन को

हमेशा बाँधना होगा

खुले आकाश के नीचे

धरा को नापना होगा  

 

दिशाओं के निमंत्रण पर क्षितिज की माँग आ पहुँची   

उडानें पंछियों  की फिर नए सम्बन्ध जोड़ेंगी|  

 

बड़ा अभिमान लहरों  को 

किनारे साध कर चलती 

उसे मालूम क्या गति  पर 

नहीं बैसाखियाँ लगतीं   

 

अनिश्चय बांटती राहें हमारे पास आ पहुँचीं 

संभालो गाँव - घर अपने, नदी तटबंध तोड़ेगी| 

 

मिटाया विवशताओं ने 

अधूरी रात का सपना 

हमें कब तक ना आएगा 

ह्रदय को बाँध कर रखना  

 

ये तन - मन की निराशाएं मेरे सिरहाने आ पहुँचीं 

कोई व्याकुल प्रतीक्षा अनछुए सन्दर्भ ढूंढेगी| 

 

सदा पहरा नहीं चलता 

बड़ी संवेदनाओं पर 

बहुत बीमार हैं  आँखें 

नहीं रहतीं ठिकाने पर  

 

उदासी बेखबर होकर मेरे आँगन में आ पहुँची 

पुरानी ओढ़नी पर ये नए पैबंद जोड़ेगी|

 

कोई उद्दाम अभिलाषा  सभी प्रतिबन्ध  तोड़ेगी| 

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