क्यूँ सहें
अपमानित जीवन से अनुबंध क्यूँ करें?
आँसुओं के मोल पर सम्बन्ध क्यूँ करें?
तन से मन का अवसाद बड़ा होता है
आदमी से ज़्यादा जल्लाद कोई होता है
पीना पड़े रोज़ अगर लान्छ्नाओं का ज़हर
मौत से भयानक हुई ज़िन्दगी की दोपहर
वर्जनाओं के असंख्य पहरे में क्यूँ रहें?
प्रेम के नाम पर प्रतिबन्ध क्यूँ सहें?
नारी तो नदी है चुपचाप बही जायेगी
अपनी खुशी से ही सागर में समाएगी
पर्वत ने रोका तो धारा को मोड़ दिया
मौसम ने छेड़ा जब बांधों को तोड़ दिया
कूलों की निर्धारित सीमा में क्यूँ बहें?
अपमानित जीवन ---------------------
हमको रुलाया है अपनों की बातों ने
बींध दिया मन को घात- प्रतिघातों ने
सीने पर बोझ लिए जीने की सज़ा है
किस्मत में देखेंगे और क्या लिखा है
संदेहों के विषधर का दंश क्यूँ सहें
अपमानित ----------------------------
जब तक स्नेह मिला जलती रही बाती
पत्थर के देवता को समझ नहीं पाती
अलगाव की सीमा पर पहुँचाया चाह ने
आँसुओं ने प्यार की कीमत चुका दी
अर्थहीन बातों के संकल्प क्यूँ करें?
अपमानित -----------------------------
आँसुओं --------------------------------
गुरुवार, 2 जुलाई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अर्थहीन बातों के संकल्प क्यूँ करें?
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रश्नो को बखूबी संजोया है आपने
अच्छी रचना