रविवार, 5 जुलाई 2009

हम तेरे जीवन की राह को संवार देंगे
तुम मेरे दर्द को फूलों का घर देना

नयनों में प्यार का सागर उतार कर
साँसों को चंदन सी खुशबू का हार दो
उड़ते समय के पंछी से पूछ लो
कब तक मनाओगे फागुन के फाग को

हम तेरी प्रीति को नए प्रतिमान देंगे
पहले मेरे आँचल को वासंती कर देना

सोनजुही मन पर गमकी हैं बेलाएं
शबनम सी चमकेंगी चुटकी भर आशाएं
बौराए पेड़ों पर मौसम का पहरा है
पलकों पर इन्द्रधनुष सपनों का उतरा है

हम तेरी चाँद सी दूरी को सह लेंगे
तुम अपनी आँखों को चाँदनी से भर लेना

फ़िर कभी मधुबन की माधुरी न रोएगी
सुधियों के सिरहाने रात भर न सोएगी
रूप के सुधासर में डूब गयी छुई-मुई
अनमोल से पलों को न लाज में डुबोएगी

हम तेरा मन आँगन तुमसे उपहार लेंगे
जीवन की देहरी पर स्नेहदीप रख देना

अंजुरी में सागर मन में मधुमास लिए
आयी है पुरवैया चातक सी प्यास लिए

पूजा की थाली के फूल न मुरझा जाएँ कहीं
खिलती कचनार की सुगंध न उड़ जाए कहीं

हम तेरी यादों को गीतों में बाँध लेंगे
तुम अपनी चाह को निबाह का शगुन देना

3 टिप्‍पणियां:

  1. हम तेरा मन आँगन तुमसे उपहार लेंगे
    जीवन की देहरी पर स्नेहदीप रख देना


    बहुत बढ़िया रचना है बधाई. लिखती रहिये. आभार.

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  2. सोनजुही मन पर गमकी हैं बेलाएं
    शबनम सी चमकेंगी चुटकी भर आशाएं
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    नए प्रतिमानो ने मन मोह लिया
    बहुत सुन्दर रचना

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