अरुण सुनहरी उषा आई !
अगणित वीरों का त्याग लिए
भूतल में तरुण प्रकाश लिए
रातों के बंधन पट खोले
मंथर गति से लहराई
अरुण सुनहरी उषा आई
जिसकी पावन किरणों ने
सबके मन को बाँध लिया
ममता की जंजीरों से वह
हमको आज जकड़ने आई
अरुण सुनहरी उषा आई
यही गुलामी की जंजीरें
भारत मान के कंठ पड़ीं जब
विवश खड़ी वह कोने में तब
अश्रु नैनों में भर लाई
अरुण सुनहरी उषा आई
पर माता के लाल करोड़ों
अविरल आंसू देख ना पाए
'भारत छोड़ो' वीरों के स्वर भरी
एकता सन्मुख आई
यहीं क्रांतिमय उषा आई
गए फिरंगी भारत माता
की जय हो , जय गान किया
माला फूलों की पहनाने
नवरंगों में उषा आई
अरुण सुनहरी उषा आई
आजादी के वातायन में
एक विचार उठा यह मन में
हम सब मिल कर एक रहेंगे
बने एकता यह सुखदाई
अरुण सुनहरी उषा आई .....
WAAH !
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