शनिवार, 8 अगस्त 2009

तुमने बुलाया पास

तुमने बुलाया पास
स्तब्ध हृद आकाश
घुमड़ घुमड़ घिर गए
बह चला हवा का
तीव्र झोंका.
युग संचित स्वप्न से
अकस्मात जाग गया
बिखरे रज कणिक से
विचारों को
वह बहा कर ले गया.
मेरे कानों में चुपके से
धीरे से
कुछ मुस्का कर
शर्माता सा
बोला, वह
यह उदासी किसलिए ?
मुझ पर रखो विश्वास
ले चलूँगा पलक मारे
आज तुमको
मैं प्रिया के पास ...

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्‍या अनुभूति है
    फुसफुसाना हवा का
    आना जाना
    महकाना नियति है

    जवाब देंहटाएं
  2. ले चलूँगा पलक मारे
    आज तुमको
    मैं प्रिया के पास ...
    sunder bhav kee rachanaa. behatareen

    जवाब देंहटाएं
  3. 'बिखरे रज कणिक से
    विचारों को
    वह बहा कर ले गया. '

    - सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

    जवाब देंहटाएं