रविवार, 23 अगस्त 2009

उनसे मिलकर उदास होना था

उनसे मिलकर उदास होना था
अब ना हमसे मिला करे कोई
 
हर फूल की जुबां में कांटें हैं
कहाँ तक उनसे बचा करे कोई
 
उम्रकैदी हैं हम रिवाजों के
कैसे खुद को रिहा करे कोई
 
मैं भी जीती हूँ जिन ख्यालों में
डर है उनको ना छीन ले कोई
 
क्यूँ चलूंगी मैं किसी की राहों पर
अपनी मंजिल तो और है कोई ....
 

2 टिप्‍पणियां:

  1. क्यूँ चलूंगी मैं किसी की राहों पर
    अपनी मंजिल तो और है कोई ....

    बहुत खुब लाजवाब रचना।

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  2. जब हम चाहते हैं सब
    मेरी राहों पर चले हर कोई

    तो हर राह पर चलना चाहिए
    चलना सब जगह चाहिए
    चलने से न कभी डरना चाहिए

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