मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए
नहीं चाहिए मुझको वैभव
पर, सुख का संसार चाहिए
नित नूतन धाराएं लेकर
एक नदी बहती है
कितनी बाधाएं टकरातीं
पर आगे बढ़तीं हैं
नहीं चाहती थम जाना
पर, सागर का आधार चाहिए
रहूँ वृक्ष से लिपटी सिमटी
मैं वह बेल नहीं हूँ
खेल सको आजीवन जिससे
ऐसा कोई खेल नहीं हूँ
खुली हवा में सांस ले सकूं
पहले यह अधिकार चाहिए
नारी हूँ , इसीलिए तुम
सीमा रेखा मत बांधो
बहार की इस चमक - दमक से
मन का मूल्य ना आंको
विलासिनी मैं नहीं ,पर
सहज मुझे श्रृंगार चाहिए
यह मेरा सौभाग्य तुम्हारे
जीवन की साथी हूँ
मन उदास होता जब ,
तुमको पास नहीं पाती हूँ
आशंकित मत जानो, लेकिन
विश्वास भरा व्यवहार चाहिए
तुमसे बंधकर , घर -बाहर
की दुनिया बदल गयी है
चलते - चलते ज्यूँ पुरवैया
सहसा ठिठक गयी है
आभूषण का लोभ नहीं प्रिय !
बाहों का गलहार चाहिए
मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए .
मन को झिंझोड़ देने वाली बेहतरीन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंअभिभूत कर दिया आपकी इस रचना ने.....भावों को इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने की मन विभोर हो गया...आपने तो प्रत्येक नारी के मन की साध वर्णित कर दी,सरल सहज सुन्दर भावपूर्ण शब्दों में...
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर रचना...आभार आपका..
great
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खुब। लाजवाब रचना। बधाई
जवाब देंहटाएंआभूषण का लोभ नहीं प्रिय !
जवाब देंहटाएंबाहों का गलहार चाहिए
मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति हैं, दिल को छूने वाली, बधाई हो आपको,