कोई फागुनी गंध तुम्हारी
साँसों में भर जाए तो,
मेरी सुधियों की थाती को
अपनी बांहों में भर लेना
बोझिल हो जाएंगी रातें
दिन हो जाएँगे आवारा
सूनी रातों के सपनों को
अपने सिरहाने रख लेना
अवश नेह के पागलपन ने
कैसा गठबंधन जोड़ा है
यह बंधन दुखदाई हो तो
सुलह ज़माने से कर लेना
मन की भाषा छंद ना जाने
उलझन से बच कर आतीं हैं
दिल की दर्द भरी सौगातें
मौसम के गीतों में रचना
बहुत कठिन है सुख की आशा
कितना संयम तन मन बाँधा
अगणित आहों का सूनापन
ले कर चुप चुप जलते रहना
कभी मिलन है कभी निराशा
मृगतृष्णाओं की परिभाषा
कोई पूछे इसके पहले
मेरी कहानी दुहरा देना ....
मन की भाषा छंद ना जाने
जवाब देंहटाएंउलझन से बच कर आतीं हैं
सही कहा है : मन की भाषा मन से पढना होता है. छन्द, व्याकरण तो दिमाग की भाषा के लिये है.
बहुत सुन्दर रचना
maadhurya bhasha ka bhi
जवाब देंहटाएं__________bhav ka bhi
__________kathya ka bhi
BHEETAR TAK TAR KAR GAYA........
badhaai !
बोझिल हो जाएंगी रातें
जवाब देंहटाएंदिन हो जाएँगे आवारा
सूनी रातों के सपनों को
अपने सिरहाने रख लेना
अवश नेह के पागलपन ने
कैसा गठबंधन जोड़ा है
यह बंधन दुखदाई हो तो
सुलह ज़माने से कर लेना
बहुत सुन्दर रचना
कितनी सुन्दर रचना है. बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत कठिन है सुख की आशा
जवाब देंहटाएंकितना संयम तन मन बाँधा
अगणित आहों का सूनापन
ले कर चुप चुप जलते रहना
अति सुन्दर रचना.....आभार