गुरुवार, 18 जून 2009

अभी बाकी है

अभी बाकी है  

 

बरसी हुई आँखों की प्यास अभी बाकी है

थक गए पाँव मगर ज़िन्दगी तो बाकी है  

 

दोस्तों की भीड़ में दोस्तों का पता नहीं  

फ़िर किसी नीड़ की तलाश अभी बाकी है  

 

खोए हुए लम्हों को ढूँढा कहाँ मैनें  

मिट गए नक्श मगर याद अभी बाकी है  

 

हर कोई अकेला है अपने-अपने दर्द में

नासमझ बातों का इतिहास अभी बाकी है  

 

जाने क्यों जमी नहीं बात इस ज़माने मैं  

ज़ख्म बढ़ते रहे उपचार अभी बाकी है

11 टिप्‍पणियां:

  1. सबसे पहले मैं आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ ब्लॉगजगत में.....जानकर ख़ुशी हुई कि आप शेफाली जी की माताजी हैं.....उनके आभारी हैं हम जो आज आप को पढ़ पा रहे हैं....पिछली ग़ज़ल वाकई शानदार रही....और यह कविता भी कुछ कम नहीं है....
    कुछ अच्छा लिखने की आपकी ललक यूं ही बाकी रहे तो बहुत बढ़िया.....लिखती रहिये.....

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  2. achi gazal hai..srijn me apko pada hai aaj achanak apka blog mila...
    achi lagi gazal...

    sakhi

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  3. हर कोई अकेला है अपने-अपने दर्द में
    नासमझ बातों का इतिहास अभी बाकी है
    bahut sundar panktiyan..aage bhii aisii hii rachnayen padhavatee rahiyega--is ummiid ke saath blog jagat me aapkaa svagat karataa hoon.
    Hemant Kumar

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  4. उड़ चुकी राख चिता की
    शमसान अभी बाकी है
    http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक -दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह पढें
    http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता,कथा,लघु कथा व विवेचनात्मक लघु लेख-
    श्याम सखा

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  5. बहुत सुन्दर लिखा है,दीपा जी।
    घुघूती बासूती

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  6. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  7. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
    लिखते रहिये
    चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
    गार्गी

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  8. आज आपका ब्लॉग देखा.......... बहुत अच्छा लगा.. मेरी कामना है की आपके शब्दों को नए अर्थ, नई ऊंचाइयां और नई ऊर्जा मिले जिससे वे जन-सरोकारों की सशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति का समर्थ माध्यम बन सकें.
    कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें-
    http://www.hindi-nikash.blogspot.com

    सादर, सद्भाव सहित-
    आनंदकृष्ण, जबलपुर

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  9. मन वृन्दावन में बसे, राधा-माधव नित्य.

    श्वास-आस जग जानता, होती रास अनित्य..

    प्यास रहे बाकी सदा, हास न बचता शेष.

    तिनका-तिनका जोड़कर, जोड़ा नीड़ अशेष..

    कौन किसी का है सगा?, और कौन है गैर?

    'सलिल' मानते हैं सभी, अपनी-अपनी खैर..

    आए हैं तो छोड़ दें, अपनी भी कुछ छाप.

    समय पृष्ठ पर कर सकें, निज हस्ताक्षर आप..

    धूप-छाँव सा शुभ-अशुभ, कभी न छोडे साथ.

    जो दोनों को सह सके, जिए उठाकर माथ..

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