वो सपनीले दिन
याद बहुत आते हैं मुझको
खट्टी मीठी बातों वाले
अमियों वाले दिन
कैसी धूप कहाँ का जाड़ा
सर पर लू की चादर ओढे
सखी सहेली के घर जाना
बात-बात पर हँसने वाले
टीस जगा जाते हैं अक्सर
बचपन वाले दिन
गली मुहल्ला एक बनाते
बारी से सबके घर जाते
उनकी रसोई अपनी होती
रोज़ ही देहरी पूजा होती
अपनापे का स्वाद चखाते
बड़े मधुर संबंधों वाले
याद बहुत आते हैं मुझको
वो सपनीले दिन
अब कैसी नीरस दुनिया है
सुविधाओं का जाल बिछा है
हर कोई अपने में गम है
किसको फुर्सत है जो सोचे
अपने और पराये घर से
दूर पास से आने वाले
खुशियों के संबोधन वाले
गीतों वाले दिन
बारिश में भीगे अनुभव से
बूँदों की रिमझिम में बसते
कविताओं की पायल पहने
याद बहुत आते हैं मुझको
मेहमानों से दिन
बहुत शिद्दत से याद किया है. बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंadbhut !
जवाब देंहटाएंadbhut !
adbhut !
____________haardik badhaai !
याद बहुत आते हैं मुझको
जवाब देंहटाएंमेहमानों से दिन
bahut khoob --- behatareen rachana