तुमने आँखों ही आँखों में
क्या संकेत दिया अनजाने
मेरे आँगन में खुशियों ने
तुमने बातों ही बातों में
क्या बातें की थीं अनजाने
मेरे भावों ने भाषा का
हर मौसम मधुमास बन गया
हर पक्षी कोकिल सा बोले
मुझको लगता इस धरती के
अल्हड़ यौवन पर मस्ती ने
करवट बदली ली अंगड़ाई
स्वप्न सजाने लगी जवानी
तुमने साँसों ही साँसों में
निःश्वास भरे कितने अनजाने
संपप्त समीरों के झोंकों ने
रात चाँदनी की चादर में
लिपटी -लिपटी सन्मुख आयी
मर्यादा भूला तम अपनी
तुमने नभ में चाँद देख कर
कोई कल्पना की अनजाने
मेरे कानों में चुपके से उसने
तुमने परिवर्तन का ऐसा
कोई मंत्र पढ़ा अनजाने
अलस चेतना सजग हो उठी
बने प्रेरणा तुम प्राणों में
जीवन में उत्साह छा गया
बिछुड़ गए तुम मुझसे लेकिन
पूजन मन्दिर में निशि-वासर
कितने भोग चढ़े क्या जानूँ
मैनें संयम की थाली में
तुमने आँखों ही आँखों में
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मेरे आँगन में खुशियों ने
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ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंबिछुड़ गए तुम मुझसे लेकिन
जवाब देंहटाएंयही विरह वरदान बन गया
पूजन मन्दिर में निशि-वासर
कितने भोग चढ़े क्या जानूँ
मैनें संयम की थाली में
अपना उर नैवेद्य चढ़ाया...
किसी अनजाने, पर बहुत ही आत्मीय के लिए लिखी ये कविता, मुझे मंत्रमुग्ध कर गयी! खास कर ये पंक्तिया, जो मुझे मेरे बहुतकरीब लगी!
सुन्दर प्रस्तुति के साथ,
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में आपका स्वागत है।
तुमने साँसों ही साँसों में
जवाब देंहटाएंनिःश्वास भरे कितने अनजाने
नये उपमानो ने चमत्कृत कर दिया
सुन्दर रचना